ChhattisgarhINDIAकोरबाछत्तीसगढ़बिलासपुरराज्य एवं शहरहाईकोर्ट

Bilaspur Highcourt News:– 500 रुपये रिश्वत प्रकरण में तहसील कर्मचारी 24 साल बाद बरी, पत्नी ने पति की मौत के बाद जारी रखी लड़ाई, हाईकोर्ट ने मिटाया दाग

Bilaspur Highcourt News:– ढाई दशक पुराने भ्रष्टाचार मामले का पटाक्षेप हाईकोर्ट ने कर दिया। वर्ष 2004 में विशेष न्यायालय ने 500 रुपये रिश्वत लेने के आरोप में तहसील कर्मचारी को एक साल की सजा और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। हालांकि अपील पर सुनवाई पूरी होने से पहले ही कर्मचारी का निधन हो गया। इसके बावजूद उनकी पत्नी ने केस को आगे बढ़ाया और अब हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए कर्मचारी को दोषमुक्त करार दे दिया।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

Bilaspur बिलासपुर।
हाईकोर्ट ने 24 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में मृतक तहसील कर्मचारी विजय कुमार तिवारी को निर्दोष मानते हुए राहत प्रदान की है। अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्ध करने के लिए रिश्वत की मांग, स्वीकार करना और बरामदगीतीनों तत्व साबित होना अनिवार्य है। इस मामले मेंमांगका सबूत नहीं होने से सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती।

मामला कैसे शुरू हुआ

साल 2001 में शिकायतकर्ता शंकरलाल लूनिया ने लोकायुक्त को रिपोर्ट दी थी कि गनियारी उपतहसील कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी विजय तिवारी ने सरकारी तालाब से जुड़ी कागजात की प्रमाणित प्रति देने के लिए 500 रुपये की मांग की।
शिकायत के आधार पर लोकायुक्त ने ट्रैप की कार्रवाई की और तिवारी से नोट बरामद हुए। इसके बाद विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) ने वर्ष 2004 में तिवारी को धारा 7 और 13(1)(डी) सहपठित धारा 13(2) के तहत एक साल कैद 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

  ईडी ने फिर लखमा को किया तलब, दस्‍तावेज और सीए के साथ होंगे पेश

अपील और पत्नी का संघर्ष

विजय तिवारी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। लेकिन 2021 में अपील लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी सुशीला तिवारी ने इस लड़ाई को जारी रखा।
बचाव पक्ष ने दलील दी कि विजय तिवारी के पास प्रमाणित प्रति जारी करने का अधिकार ही नहीं था। गवाहों के बयान भी आपस में विरोधाभासी थे – किसी ने कहा नोट जेब से मिले तो किसी ने कहा टेबल से। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देकर बताया गया कि केवल नोट की बरामदगी पर्याप्त नहीं है, अपराध तभी सिद्ध होगा जब मांग और स्वीकार दोनों साबित हों।

हाईकोर्ट का आदेश

जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की सिंगल बेंच ने कहा कि इस मामले में रिश्वत की मांग का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है। जबकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में यह तत्व सबसे अहम है। इसलिए निचली अदालत का फैसला टिकाऊ नहीं है। अदालत ने अपील स्वीकार कर दोषसिद्धि रद्द कर दी और मृतक कर्मचारी विजय तिवारी को बरी कर दिया।

Was this article helpful?
YesNo

Live Cricket Info

Kanha Tiwari

छत्तीसगढ़ के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्होंने पिछले 10 वर्षों से लोक जन-आवाज को सशक्त बनाते हुए पत्रकारिता की अगुआई की है।

Related Articles

Back to top button